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कविता

काफूर

स्नेहमयी चौधरी


सुबह कविता काफूर हो गई
याद आया - पोस्ट आफिस में कितना पैसा है,
बैंक में कितना, घर में कितना ?
हारी-बीमारी में कैसे-कौन पैसे निकालेगा ?
यह भी कोई कविता का विषय हुआ ?
अपने को सारा दिन धिक्कारते रहें
और टीवी के प्रोग्राम देखते रहें -
ऐसे जीवन का क्या करें ? - निरर्थक !
सार्थक अब कभी कुछ हो नहीं सकता ।
फिर भला कविता क्या देगी मेरा साथ ‍!


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हिंदी समय में स्नेहमयी चौधरी की रचनाएँ